क्या कहें जनाब कि अकेलापन क्यों इतना भाता है, खुद से बातों में अक्सर यू ही वक्त गुज़र जाता है।

अब सहारे की कोई बात मत कर ऐ जालिम जिंदगी, मेरा अकेलापन ही काफी है मुझे सहारा देने के लिए।

अकेलेपन से कोई बैर नही है मुझे, डरता हूँ की कोई याद ना आ जाये मुझे।

वो तुम्हारे नज़रिए से अकेलापन हो सकता है, पर मेरे नज़रिए से देखो वो मेरा सुकून है।

मुझे मेरा अकेलापन ही कुछ ज्यादा भाता है, इन खोखले बनावटी रिश्तो के बीच दिल घबराता है।

अकेलेपन से दिल जाने क्यूँ घबरा रहा है, मुझें वो तेरी बातें फिर से याद दिला रहा है।

भीड़ में ये अकेलापन मुझसे मिलने जब आया, क्या है ये अकेलापन मुझे समझ में तब आया।

अकेला मरने के लिए तैयार हूँ, लेकिन अकेला जीने के लिए तैयार नहीं हूँ।

आज जो इस अकेलेपन का एहसास हुआ खुद को, तो समहाल नहीं पाया अपने इन आसुओं को।

यूँ ही बेवजह न मुझे वो खोजता होगा, शायद उसे भी ये अकेलापन नोचता होगा।

जनाब कैसे मुकम्मल हो उस इश्क़ की दास्तां, जिसकी फितरत में ही अकेलापन होता है।

सुबह से रात और रात से यु ही सुबह हो जाती है, ये अकेलापन खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है।

खुशियों को बाँटता हुआ एक मेला हूँ मैं, सच कहूँ तो अपनों में भी बहुत अकेला हूँ मैं।

मैं अकेलेपन में खुद को तुमसे छिपाते जा रहे हूँ, अपनी ही नजरों में खुद को गिराते जा रहा हूँ।